Astha Singhal

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खोज अस्तित्व की# शॉर्ट स्टोरी चैलेंज # स्त्री विमर्श

#शार्ट स्टोरी चैलेंज

जॉनर- स्त्री विमर्श

कहानी - खोज अस्तित्व की

हॉस्पिटल में बहुत ज़्यादा भीड़ थी। जहां देखो वहां मरीज़ ही मरीज़ दिख रहे थे। उस भीड़ भाड़ और शोरगुल से दूर एक वृद्ध औरत अकेली कुर्सी पर बैठी थीं। उनकी आंखों में एक सूनापन था। उम्र लगभग सत्तर वर्ष के आसपास थी। 

सब लोग अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे। पर उन्हें किसी का इंतज़ार नहीं था। वह शूनयहीन आंखों से मानो कुछ खोज रहीं थीं। 

नर्स सबको बारी-बारी नम्बर से बुला रहीं थीं। उनमें से एक नर्स की नज़र उन वृद्ध महिला पर पड़ी। उसे ताज्जुब हो रहा था कि वह महिला आखिरकार किस डॉक्टर के पास जाना चाहतीं हैं। 

"अम्मा, आपको किस डॉक्टर को दिखाना है?" आखिरकार नर्स ने पूछा ही लिया। 

"मुझे….पता नहीं….किसे दिखाऊं?" उन महिला ने नर्स से ही प्रश्न कर डाला। 

"आप अपनी बिमारी बताइए, मैं आपको बता दूंगी कि आपको किस डॉक्टर को दिखाना चाहिए।" नर्स बोली।

वृद्ध महिला ने भावहीन आंखों से उस नर्स को देखते हुए कहा,"बिमारी? ….अरे! हां…. बिमारी ही तो है मुझे। दरअसल…. मुझे ना भूलने की बिमारी हो गई है। मुझे…सब कुछ याद रहता है। कुछ…भी…भूलती नहीं मैं। सब याद रहता है।" 

नर्स थोड़ा चौंक गयी। उसे समझ नहीं आया कि वो क्या कहे। "पर अम्मा, ये तो अच्छी बात है ना। आपको सब याद रहता है। इस उम्र में अक्सर लोगों को कुछ याद नहीं रहता। आप क्यों…परेशान हो रहीं हैं?" 

"यही तो ना! इतनी उम्र हो गई पर मुझे फिर भी सब याद रहता है। क्यों भला? मुझे भी सब भूलना है। नर्स बेटा, कौन सा डॉक्टर मुझे भूलने की दवा दे सकता है?" वह महिला बोलीं। 

नर्स की आंखों में ना जाने क्यों आंसू भर आए। उसे लगा कि शायद इन महिला को दिमाग के डॉक्टर की आवश्यकता है। वह उन्हें बहुत प्यार से उठा कर हॉस्पिटल के सबसे वरिष्ठ मनोचिकित्सक के पास ले गयी। और डॉक्टर को उनकी दिमागी हालत के बारे में जानकारी दी।

"माजी, आप क्या- क्या भूलना चाहती हैं?" डॉक्टर ने पूछा।

"डॉक्टर…. मैं…हर वो याद अपने ज़हन से मिटा देना चाहती हूं जो मुझे दर्द और कष्ट देती है।" 

"और वो कौन सी यादें हैं माजी?" डॉक्टर ने पूछा।

"मेरे दोनों बेटों से जुड़ी हर याद। कैसे बचपन में उनकी हर इच्छा को अपनी ज़रूरतों का गला घोंट कर पूरा किया, उनकी पढ़ाई, ट्यूशन, एडवांस स्टडीज़ के लिए अपने गहने तक गिरवी रख दिए, उनकी हर खुशी को सर आंखों पर रखा। सब…सब भूल जाना चाहती हूं।" ये कहते हुए उनका गला भर आया। 

बातों बातों में डॉक्टर को पता चला कि उनका नाम सरोज नैय्यर है। बहुत पढ़ी लिखी महिला हैं। सरकारी नौकरी थी, पर अपने परिवार और बेटों की देखभाल के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। उस समय पति का व्यवसाय बहुत अच्छा चल रहा था पर अचानक पति की मृत्यु होने से माली हालत बहुत बिगड़ गई। बच्चों और बुज़ुर्ग सास- ससुर की ज़िम्मेदारी सरोज पर आ गई। पर उन्होंने जी जान लगाकर सबकी देखभाल की। क़र्ज़ लेकर बेटों को उच्च शिक्षा दिलवाई। 

आज बेटे अमेरिका में सेटल हैं। अब वापस नहीं आना चाहते। बेटों के मोह में पड़कर सरोज जी अमेरिका भी गयीं। पर वहां उन्हें एक नौकरानी से ज़्यादा दर्ज़ा नहीं मिला। और जब उन्हें बेटों के कुटिल इरादों के बारे में पता चला कि वह दोनों मां का घर और पैसे ऐंठने के चक्कर में हैं तो सरोज जी किसी तरह वहां से यह कह कर वापस आ गयीं कि घर बेच कर आएंगी। 

अब क्योंकि वो घर नहीं बेच रहीं, तो उनके बेटों ने उनसे नाता ही तोड़ लिया। अब दोनों में से कोई भी बेटा फोन‌ तक नहीं करता। 

सरोज जी की कहानी सुन वहां खड़ी नर्स की आंखों में भी आंसू आ गए। 

"इसलिए, आपसे विनती है कि ऐसी दवा दीजिए जिससे मैं सब कुछ भूल जाऊं। क्योंकि याद आता है तो बहुत दर्द होता है। तकलीफ़ महसूस होती है।" सरोज जी ने कहा।

"माजी, अब वक़्त आ गया है सब कुछ भूलने का और अपने अस्तित्व को खोजने का। वो अस्तित्व, जो परिवार, बच्चों, ज़िम्मेदारियों के बीच कहीं खो गया था। आज से आप उस सरोज को ढूंढेंगी जो को चुकी है।" डॉक्टर ने कहा। 

सरोज जी उनकी तरफ अपलक देखती रहीं। आज कितने सालों बाद किसी ने उस सरोज को ढूंढने की कोशिश की थी जो खो चुकी थी। डॉक्टर उन्हें एक स्पेशल वार्ड में ले गये। यहां मानसिक रूप से कमज़ोर बच्चों को रखा जाता था। ऐसे बच्चे जिनका इस दुनिया में कोई नहीं था, बेसहारा और अनाथ। 

"माजी, आपने मनोविज्ञान में मास्टर्स किया है। और मैं आपकी बातों से समझ गया था कि आप एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक बनना चाहते थे। तो….अब कीजिए अपनी इच्छा पूरी। आज से आप इन बच्चों को संभालिए। जो आप तब नहीं कर पाए अब कीजिए।" डॉक्टर ने प्यार से कहा। 

ये सुन सरोज जी का ह्रदय भर आया। वह कुछ पल उन बच्चों को देखती रहीं और फिर देखते ही देखते उन सब के साथ ऐसे घुल मिल गयीं जैसे उनसे बरसों का नाता हो। 

आज सरोज जी अपनी सब कड़वी यादों को भुला कर अपने अस्तित्व को खोज चुकी हैं। आज वो उस स्पेशल वॉर्ड की संचालिका हैं और वह सब बच्चे उनका जीवन। 

लेखिका
आस्था सिंघल

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14 Comments

Haaya meer

10-May-2022 06:17 PM

Amazing

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Muskan khan

09-May-2022 07:05 PM

Nice

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Astha Singhal

09-May-2022 11:39 PM

Thanks

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Neelam josi

09-May-2022 06:44 PM

Nice 👍🏼

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Astha Singhal

09-May-2022 11:39 PM

Thanks

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